जब से फैक्ट्री मे मेरी दूसरी पाली की शिफ्ट ड्यूटी लगी थी, तब से रात्रि में घर जाने मे काफी देर हो जाया करता था। ऑफिस से घर की दूरी यही करीब एक किलोमीटर की रही होगी।
जब तक बहुत जरूरी ना हो, रात मे घर आने-जाने के क्रम में रास्ते मे पड़ने वाली सुनसान गालियां, जिनसे होते हुए घर जल्दी पहुँच तो सकता था, पर उन गलियों को पकड़ना मैं पसंद न करता था।
क्यूंकि एक तो वहाँ घात लगाकर बैठे चोर–उचक्कों का खतरा रहता, तो दूसरी तरफ कुत्ते बहुत भौकतें थें उधर – जिससे मुझे डर लगता था।
इसलिए, हमेशा पक्की सड़क वाले मुख्य मार्ग से ही घर जाया करता।
उस रात हवा बहुत तेज़ चल रही थी और शायद ज़ोरों की बारिश भी होने वाली थी।
“रात के करीब 12 बजे हैं, बच्चे भी सो गए होंगे। पत्नी, निर्मला भी मेरे बिना खाना नहीं खाती, सो खाली पेट मेरी राह देखती होगी।” - यही सब सोचते और टिफिन बॉक्स हाथ मे लटकाए मैं तेज़ कदमों से घर की तरफ निकल पड़ा।
कुछ दूर चलने के बाद आज उस संकरी और कच्ची गली की राह ले लिया ताकि जल्दी से घर पहुँच जाऊं।
इतनी रात और ऊपर से यह सुनसान और संकरी गली, मुझे डर भी लग रहा था क्यूंकि कुत्ते सतर्क होते दिखने लगें- मानो कोई अनजाना, अनचाहा मेहमान आ रहा हो उनकी तरफ।
वैसे मानव हो या ये कुत्ते – बिन-बुलाये मेहमान किसी को पसंद नहीं आते।
अपने इलाके मे रात में आने-जाने वाले हरेक इंसान को पहचानते हैं ये जानवर।
किसी तरह मैं डर – डर के आगे बढ़ता रहा।
चोरों का ख्याल मन मे आते ही मुझे मेरी शादी मे मिली वो कलाई घड़ी खोल कर मैंने जेब मे डाल ली।
सासु माँ की अमानत – वह घड़ी, उनकी आन-बान-शान थी, जिसका कुशल-क्षेम वो अक्सर पूछ ही लिया करती थीं, और सुनहरे रंग की उस घड़ी की उच्च गुणवत्ता से सभी को परिचित कराने में गौरवान्वित महसूस करते उनके चेहरे पर उठता वो चमक देखते ही बनता था । नहीं चाहता था कि मेरी पूजनीय सासु माँ के मन को तनिक भी ठेस पहुंचे।
इधर, गली में भीतर की ओर बढ़ने पर अब वह संकरी हो चली थी । दो से तीन आदमी एक साथ आ जाएँ तो आगे-पीछे होकर चलना पड़ता।
फिर सड़क कच्ची भी थी और कहीं-कहीं से टूटी–फूटी सो अलग । बहुत धैर्यवान होंगे इस गली में रहने वाले, जो इन रास्तों से रोज आते-जाते होंगे।
मैं महसूस कर रहा था कि दो चीजें इस वक़्त तेज़ी से चल रही हैं – एक तो दिमाग में ढेर सारी बातें और दूसरे इस गली मे मेरे क़दम।
थोड़ा चलने के बाद एक मोड़ आया, जहां एक मस्जिद पड़ता है । मस्जिद के ऊपर लगे बड़े भोपू वाले लाउडस्पीकर के अलावा उस अँधियारे में और कुछ भी बड़े ही मुश्किल से दिख पा रहा था।
पर, मैं महसूस कर पा रहा था कि अब बड़ी अच्छी भीनी सी खुशबू आ रही थी वहाँ ! साथ ही, ठंड भी अब थोड़ी–थोड़ी बढ़ने लगी थी।
अपने धुन मे मैं अपने गंतव्य की ओर बढ़ता चला जा रहा था।
थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि पीछे से किसी के कदमों की आहट सुनाई देने लगी । अभी तक कोई तो न था मेरे आस-पास, यकायक यह किधर से आ गया ? कौन है ये ? कोई कुत्ता, कोई चोर, या फिर मेरा भ्रम!
डर भी लग रहा था....न लूटना चाहता था मैं, और ना ही इंजेक्शन लेने का मन था ! इसी डर में मेरे क़दम और तेज़ होने लगे।
अभी भी कदमों की वो आहट मेरा पीछा कर ही रही थी।
अभी तो यह गली भी खत्म नहीं हुआ था ...... थोड़ा और समय लगता इसे पार करने में।
अब मुझसे रहा न गया और बहुत हिम्मत कर के पलटकर देख ही लिया।
सफ़ेद साड़ी में लिपटी वह एक स्त्री थी, जो तेज़ कदमों से मेरी ओर बढ़ी चली आ रही थी।...